अनकही 2
एक उम्र से मै गुम हुन कहीं
और एक उम्र से ही उदास हुन..
एक उम्र से लापता भी हुन
और उस उम्र में मिला भी हुन…
खोई हुई उन राहों में खोई आज वोह उम्र है
मिल पाए जिससे वोह वक़्त कहाँ किसी का वोह अक्स है…
मेहनत का वोह पाठ कहीं किताबों में खोया है
किस्मत की लकीरों ने ही तो आज, कमियाबी का बीज बोया है…
भूली हुई उन राहों में अब भी में चलता रहता हुन
शायद हो खुदा को मंजूर काटों में भी कभी सोता हुन…
हर रात अंधेरों से लड़ते आंखें सुबह पर टिक जाती है
मन्नते मांगते मांगते सुबह फिर रात में बदल जाती है…
कुछ शब्द कानों में गूंजते रहते है
कभी होसला बंधते तो कभी हिम्मत बंधते रहते हैं …
शायद होगी वोह सुबह कभी जब में भी गीत गाऊंगा
वक़्त के सामने झुक के नहीं सीना तान के चल पाउँगा…
पर अभी तो वोह साँझ दूर है
और दूर है अभी वोह मंजिलें …
लम्बे है तन्हा रास्ते
और तन्हा है अब ये फासले…