अनकही 4 – (अनकही बातें)


किस्से और किताबे ,न जाने कितनी ही अनकही बातें
कभी जुबान पे तो कभी ख्याल में
उछलती कूदती और मचलती दिल के मैदान में  |
 
रंग है न ही रूप है, कैसे कोई पहचान करे
शब्द अनकहे से, अधूरे से, हर पल मुझे परेशान करे
अनकही बातें दिल की गहरायी से आवाज़ लगाये
नाचे, मुश्कुराए और धीरे धीरे शरमाये |
 
कभी चुपके से मुझसे यह सवाल करे
“नादान परिन्दे , दिल क्यूँ तू अपना यूँ मुफ्त में हैरान करे ?”
फिर धीरे से मेरे कानो में फुश्फुशाये
कह दे, कह दे, दिल के वोह बात,
आज तो दे तू मौका उसे , वोह भी तो आज, थोडा शर्माए |
 
फिर कहीं जोर से मुझे हसाती है
पँख जैसी उँगलियों से मुझे गुदगुदी लगाती है
फिर कभी मजबूर कर आँखें नम कर जाती है
दूर खड़े देख मेरी बेबसी पे भी मुशकुराती है  |
 
सोचता हूँ की क्या जनता हूँ में इनके बारे में
कभी दोस्त तो कभी दुशमन सी है यह अनकही बातें
कोई पहचान नहीं ,कोई ईमान नहीं
बस इक ढलती शाम सी है यह अनकही बातें  |
 
अनकही का भी कुछ अनकहा होगा
बिना शब्द न जाने कैसे वोह ख्याल रहा होगा
किसी से तो कहती होगी यह अनकही बातें
बोलती ,बताती और समझाती होंगी खुद की अनकही बातें |
 
जब भी सोचूँ तो एक सवाल मुझे झंजोर्ता है
क्या इतना मुश्किल है कुछ कहना ?
पर बाँवरे मन को कौन समझता है
नादान है, न जाने इससे क्यूँ अछा लगता है सब सहना  |
 
पर ख्याल तो बस एक पल का है
दिल की गहरायी को तोले कोई तौल नहीं
जुबान पे हो या ख्यालों में
अनकही बातों का कहीं भी तो कोई मोल नहीं  |
 
अनकही बातें , चुलबुली सी , शरारती सी
कभी गुमसुम तो कभी मायुश सी
मुशकुराती तो कभी हैरान सी
सब कुछ है पर फिर बेजुबान सी ….
 
~अखंड
Comments
5 Responses to “अनकही 4 – (अनकही बातें)”
  1. Nidhi says:

    good one ……..:)

  2. amrita singh says:

    nice one ……………feelings are from childhood……………

  3. Your poem looks a painting alike to me, beautiful signs. I’m sorry I cannot read it!

  4. Rohit singh says:

    Good one sirji….

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