ख़ामोशी


ख़ामोशी की एक जुबान
एक बंद आँख और एक खुला असमान
इतराते पंख और मतवाली उड़ान
वक़्त की एक अनकही थकान
कुछ पंक्तियाँ बेजान
अनजान, हैरान और परेशान
प्यारी सी एक मुश्कान
ख़ामोशी, एक बिन बुलाया मेहमान
आँखों से ओझल एक शान
चमकती सी एक सोने की खदान
गुमसुम फिर भी गुमनाम
ख़ामोशी कभी कभी मेरे अश्तित्व की पहचान
ख़ामोशी, कवी की एक अजीब से कविता
न कोई शब्द न कोई अर्थ
एक नए मौसम सी एक नयी सी रचना
अंत ही सही पर सुरुआत भी है ख़ामोशी
एक ढलते सूरज की चाँद को सिफारिश भी है ख़ामोशी
प्यार है तकरार भी है ख़ामोशी
और हर लव्ज का सार भी है ख़ामोशी.
Comments
One Response to “ख़ामोशी”
  1. NIdhi Nigam says:

    good going….!!!!

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