उड़ान
थे मोड़ कुछ अजीब से,
कुछ सीधे कुछ सजीद से,
पंखों पे भारी थी थकान ,
धीमे से साधी थी मैंने भी एक उड़ान |
कुछ दूर चला तो था में शायद,
थका था रुका भी था शायद,
शाम थी बेरंग सी , चुप सी ,कुछ खामोश सी ,
थक के जब में बैठ गया,
हवा मुझे ही उठा के चल पड़ी |
कहती की अभी तो लक्ष्य दूर है,
थाम के रख परिंदे तू अपनी सांस,
वक़्त है अभी ,
अभी भी छुपा है कहीं पे अटूट विश्वास |
udaan ke parinde
nice work….!!!
Thanks 🙂
wonderful lines..