शब्द
कुछ कह के जब में रुक गया
शब्द अपने आप चल दिये
दौड़े भागे और इठला के मचल दिये
जब रोका मैंने उन्हें
तो घबरा के भाग गये
रुके मुस्कुराये और फिर हड़बड़ी में दौड़ गये
फिर कभी सपने में आये
बोले कब तक रोकेगा तू हमें
आँख खुली तो मोति बन बिखर गये
समेटने की जब मैंने कोशिश की
तो पानी सा वोह बह गये
एक दिन अचानक अजीब ख्याल में मिले
कलम से जब मैंने अपनी सोच उतारी
कविता जैसे वोह वक़्त पे छप गये
मुझे देख वोह धीरे से मुश्कुराए
आँखों में देख वोह इतराए
किताब की गर्मी में वोह बच्चों जैसे सो गये