कवी की कविता


कवी की कविता

धुंदली सी, सफ़ेद सी ,मटमैली सी
कभी गुनगुनाये तो कभी मुश्कुराए
छोटे छोटे हजारों सपने दिखाये
कभी टूटी नींद सी रात भर जगाये
हसाए और फिर जोर से रुलाये
रिमझिम बारिश सी इतराए
छुईमुई सी कलम देख शर्माए
चुपके से कानो में कुछ प्यारा सा शब्द कह जाये
फिर जोर से गले लगाये और अपनाये…
कवी की कविता
उसकी पहली और आखिरी सहेली
प्यारी सी , गुमसुम सी, मासूम सी
कभी अजनबी तो कभी सिर्फ एक पहचान सी
अनजान और बदनाम सी
आँखों से टपकती अश्क सी
मंजिल सी, फिर भी राह सी
ख्याल सी, एक अनकही बात सी
वीरान सी, और एक परिवार सी …
कवी की कविता
एक उलझी विचार सी ….
Comments
One Response to “कवी की कविता”
  1. NIdhi Nigam says:

    hey..!! thats really good…

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